राजस्थान के 6 दुर्ग विश्व विरासत (6 fortification World Heritage of Rajasthan)
-यूनेस्को ने की घोषणा
विश्व की प्रतिष्ठित यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शुक्रवार 21 जून को राजस्थान के छह पहाडी दुर्ग- आमेर, चित्तोडगढ, गागरोन, जैसलमेर, कुम्भलगढ और रणथम्भौर को शामिल कर लिया गया। आमेर महल में प्रेसवार्ता कर पर्यटन मंत्री बीना काक ने यह जानकारी दी। पूरे देश में 30 वल्र्ड हेरिटेज साईट्स हैं, जिसमें से राजस्थान में पहले घना एवं जन्तर मन्तर को मिला कर दो साईट्स थीं। जो कि अब इन 6 दुर्गों को मिलाकर 8 हो गई हैं। इस घटनाक्रम को विश्व में लाईव देखा एवं सराहा गया। सभी देशों के प्रजेन्टेशन देखे और राजस्थान के प्रजेन्टेशन को विशेष रूप से सराहा गया।
यह अपने आप में एक अद्भुत एवं असाधारण मनोनयन था। राजस्थान के दुर्ग, कला-संस्कृति, इतिहास एवं स्थापत्य कला के बेजोड नमूने हैं। जिसे पूरे विश्व मे सराहा जा रहा है। हमारी ओर से पुरा विरासत विशेषज्ञों द्वारा देश व राज्य का अत्यन्त प्रभावशाली प्रजेन्टेशन किया गया। इस दौरान आमेर महल की विशेष रूप से चर्चा की गई और आमेर के साथ जयगढ को भी इसमें शामिल करने पर जोर दिया गया। किन्तु जयगढ के निजी स्वामित्व में होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। फिर भी सरकार निजी सम्पतियों को भी विरासत के रूप में संरक्षित करने का कार्य कर रही है, इसमें पटवों की हवेली, जैसलमेर का कार्य प्रमुख है।
हमारे हर पहाडी दुर्ग की छटा अलग हैं। रणथंभौर के सघन जंगलों में नदी के किनारे और पहाड़ियों के मध्य गागरोन का 20 किमी से ज्यादा क्षेत्र हो या जैसलमेर का रेगिस्तानी इलाका, पारंपरिक भारतीय सिद्धांतों के अनुसार शिल्प कला के अद्भुत नमूने हैं। रेगिस्तान के विशाल भूभाग में जैसलमेर भी एक अलग पहाड़ी किले का उदाहरण है। प्रसिद्ध चित्तौडगढ़ का किला आज भी राजपूत विरासत, शौर्य और पराक्रम के साथ-साथ लोक साहित्य में जीवंत है।
जंगल के बीचोबीच स्थित होने से तो रणथंभौर किला – जंगली पहाड़ी किले की एक अलग आभा रचता ही है, हमीर महल का भारतीय महलों में सबसे पुराना होना तो इसे और भी मूल्यवान बना देता है। यह भारतीय महलों के गिनेचुने बचेखुचे शेष हिस्सों में सबसे बेहतर स्थितियों में है। गागरौन किला नदी द्वारा संरक्षित किले का एक अपूर्व उदाहरण है। आमेर महल राजपूत-मुगल शैली के सामूहिक विकास के एक मुख्य कालखंड (17वीं शताब्दी) को दर्शाता है। इस कडी मे आमेर से जयगढ़ को जोडने के लिए टनल का जीर्णोद्वार कार्य किया गया। इस कार्य को भी समारोह स्थल पर देखा गया। उक्त उपलब्धियों का श्रेय राज्य सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों की मेहनत और लगन का जाता है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि इस प्रकार देश के अन्य पहाडी दुर्गों जैसे कलिंजर, कांगडा, माण्डू, रोहताश्व गढ और आसिनगढ़ के लिये भी भारत सरकार के स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये। देश में राजस्थान अपनी अद्भुत विरासतों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में लाने के लिए अभूतपूर्व अभियान चलाकर बाकी राज्यों से काफी आगे निकल गया है। पहले जंतर मंतर और अब पहाड़ी किलों को इस विरासत सूची में लाने के बाद हम आभानेरी, बांदीकुई और बूंदी की बावडियों को भी इसी सूची में शामिल करवाने का प्रयास करेंगे और उसके बाद हमारे सामने शेखावाटी की पेंटिग्स हैं। ये सब काम हमें एक साथ ही शुरू करने होंगे। जयपुर और राज्य के लोग आज बहुत खुश है हम सभी के लिये यह एक बहुंत
उन्होंने कहा कि यह बड़ी उपलब्धि है परन्तु उपलब्धि के साथ-साथ यह एक चैलेंज भी है और हमें इस उपलब्धि को बरकरार रखते हुये यूनेस्को की कसौटी पर खरा उतरना है। हमें इनकी साफ-सफाई एवं रख-रखाव पर विशेष ध्यान देना है। इसमें जनता का सहयोग भी अत्यन्त आवश्यक है और यह जनता की जिम्मेदारी भी बनती है । इस कार्य को पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप के आधार पर कराया जाता सकता है।
उन्होंने कहा कि इस उपलब्धी का श्रेय मुख्यमंत्री को भी जाता है। उन्होंने इस कार्य के लिये फ्री-हैण्ड देते हुये कभी भी वित्तीय संसाधनों की कमी नहीं आने दी।