कभी जब हॉलीवुड की कोई पीरियड फिल्म देखता हूं जिसमें घुड़सवारों के दल दूसरे दल को रौंदते हुए विजय के लिए बढ़ते हैं तो शरीर पर रोम उठने लगते हैं। सब कुछ कितना बदल गया है। हर चीज बदल गई है। आधुनिकता के साथ तब्दील हो गई है। लेकिन इस बदलते दौर में भी एक चीज है जो आज भी अपने मूल रूप में है। और वह है-जयपुर की 61 कैवेलरी।
61 कैवेलरी (61 Cavalry Regiment) भारतीय सेना की एकमात्र घुड़सवार रेजीमेंट है। आज भी यह रेजीमेंट अपने ऐतिहासिक और शाही अंदाज को बरकरार रखे हुए है। आज भी सिर्फ खेल के मैदानों में ही नहीं बल्कि युद्ध के मोर्चों पर भी यह रेजीमेंट पीछे नहीं हटी है और समय-समय पर अपनी शूरवीरता का परिचय दिया है। 61 कैवेलरी का घर जयपुर है। आज यह रेजीमेंट खेलों, युद्धों के साथ साथ पर्यटन अभिवृद्धि का भी प्रमुख हिस्सा बन गई है।
हाल ही जयपुर में 61 कैवेलरी की विशेष रिव्यू परेड हुई। स्वतंत्रता के बाद स्टेट फोर्स के विघटन के बाद यह रेजीमेंट अस्तित्व में आई थी, जिसने अपना शाही अंदाज आज भी बरकरार रखा है। खास बात यह है कि यह दुनिया की एक मात्र घुड़सवार रेजीमेंट है।
61 कैवेलरी (61 Cavalry) अपने युद्ध कौशल के साथ राजकीय समारोह के शाही अंदाज एवं खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मशहूर है। पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 का युद्ध, 1989 में श्रीलंका में ऑपरेशन पवन, वर्ष 1990 में ऑपरेशन रक्षक, 1999 में ऑपरेशन विजय और 2001 में ऑपेरशन पराक्रम में 61 कैवेलरी ने शौर्य प्रदर्शन किया। ओलंपिक और एशियाड खेलोंमें 61 कैवेलरी के घोडों ने अपना दमखम दिखाया। 61 कैवेलरी को 1 पद्मश्री और 10 अर्जुन पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
पर्यटन विभाग के विशेष आग्रह पर 61 कैवेलरी ने हाल में आमजन के सामने अपनी घुड़सवार क्षमता का प्रदर्शन किया। जयपुरवासी कुशल घोड़ों और सिद्ध सवारों के हैरतभरे अंदाज देखते रह गए। पर्यटन विभाग की ओर से यह अच्छी पहल की गई। 61 कैवेलरी का प्रदर्शन अब तक रणक्षेत्र या विशेष आयोजनो में ही देखने को मिलता था।
नेहरू की इच्छा पर बना रहा अस्तित्व-
आजादी से पहले 61 कैवेलरी भारत की स्टेट फोर्स में समावेशित थी। आजादी के बाद स्टेट फोर्स समाप्त कर दी गई। लेकिन नेहरू की इच्छा थी कि 61 कैवेलरी का अस्तित्व बना रहे। तभी से यह रेजीमेंट घुड़सवार रेजीमेंट के तौर पर अपने शाही अंदाज को बनाए हुए है। 1953 में जोधपुर, कछावा, मैसूर लांसर, पटियाला लांसर, ग्वालियर लांसर, कश्मीर, भावनगर, सौराष्ट्र और हैदराबाद की स्टेट फोर्स को मिलाकर यह अस्तित्व में आई। जयपुर स्टेट की कछावा होर्स रेजीमेंट में इसे जगह दी गई। इसके बाद से 61 कैवेलरी रेजीमेंट का मुख्यालय जयपुर में है। दिल्ली में इसकी स्कवॉड्रन मौजूद है।
दिलचस्प तथ्य-
- इस कैवेलरी ने देश को बेहतरीन पोलो खिलाड़ी दिए हैं। इस श्रेणी में ब्रिगेडियर वीपी सिंह, प्रदीप मेहरा, भवानी सिंह, खान मोहम्मद, रघुवीर सिंह, कर्नल गरचा, ब्रिगेडियर पनाग, कर्नल सोढी सहित कई नामी खिलाड़ी इसी रेजीमेंट से हैं।
- प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार की ओर से फ्रांस, इजिप्ट सहित कई देशों में इस रेजीमेंट ने अपने युद्ध कौशल की छाप छोड़ी। विदेशी जमीन पर भी अपने महत्व का डंका बजाने के बाद दुनिया की निगाह में इसके प्रति सम्मान और बढ़ गया।
- कैवेलरी के घोड़े अपने दमखम के साथ साथ अपने बुद्धि कौशल के लिए भी जाने जाते हैं। सेना के हिसार और बाबूगढ स्थित आरबीसी ब्रीडिंग सेंटर कैवेलरी घोड़ों का जन्म स्थान है। जन्म के बाद यहीं घोड़े का नाम और नंबर तय होता है। आरबीसी में घोड़ों को रिमाउंड नंबर दिया जाता है। रेजीमेंट के हवाले होने के बाद यह नंबर हुफ नंबर में बदल जाता है। यही हुफ नंबर घोड़े की आजीवन पहचान बन जाता है।
- घोड़े के जन्म के बाद शुरू होता है इन विशेष घोड़ों की ट्रेनिंग का दौर। इनकी ट्रेनिंग सहारनपुर और हिमपुर स्थित सेंटर में होती है। तीस हफ्ते तक स्पेशल ट्रेनिंग के बाद इन्हें रेजीमेंट के हवाले कर दिया जाता है। घुड़सवार की ट्रेनिंग 20 हफ्तों तक चलती है। ट्रेनिंग के दौरान घुड़सवार को घोड़े के स्वाभाव, मैनेजमेंट, सामान, फिजिकल फिटनेस सहित अन्य जानकारियां दी जाती हैं। सवार की ट्रेनिंग पुराने घोड़ों से होती है और ट्रेन हो जाने के बाद इन्हें नए घोड़े दिए जाते हैं।
- जयपुर की मिट्टी इस रेजीमेंट के लिए अनुकूल है। यहां की रेतीली जमीन पर घोड़ों को चोट लगने की संभावना कम से कम रहती है। पूर्व राजमाता गायत्री देवी भी घोड़ों की ट्रेनिंग के लिए जयपुर को सबसे अच्छा स्थान मानती थी।
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