जयपुर Hindi

जंतर मंतर-जयपुर की ऐतिहासिक वेधशाला

Jantar Mantar

जंतर मंतर

Jantar Mantarजंतर मंतर का अर्थ है यंत्र और मंत्र। अर्थात ऐसे खगोलीय सूत्र जिन्हें यंत्रों के माध्यम से ज्ञात किया जाता है। देश में पांच जंतर मंतर वेधशालाएं हैं और सभी का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने कराया था। जयपुर के अलावा अन्य वेधशालाएं दिल्ली वाराणसी उज्जैन और मथुरा में स्थित हैं। इन सबमें सिर्फ जयपुर और दिल्ली की वेधशालाएं ही ठीक अवस्था में हैं, शेष जीर्ण शीर्ण हो चुकी हैं। ये वेधशालाएं प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए लिए प्रयोगशाला की तरह काम आती थी।

यूनेस्को ने जयपुर के जंतर-मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की घोषणा की है।
राजस्थान की राजधानी पिंकसिटी जयपुर के राजमहल सिटी पैलेस परिसर में जंतर-मंतर वेधशाला स्थित है। जंतर-मंतर तक दो रास्तों से पहुंचा जा सकता है। एक रास्ता हवामहल रोड से जलेब चौक होते हुए जंतर मंतर पहुंचता है, दूसरा रास्ता त्रिपोलिया बाजार से आतिश मार्केट होते हुए चांदनी चौक से जंतर मंतर तक पहुंचता है। जंतर मंतर का प्रवेश द्वार सिटी पैलेस के वीरेन्द्र पोल के नजदीक से है।

जंतर-मंतर के चारों ओर जयपुर के सबसे अधिक विजिट किए जाने वाले पर्यटन स्थल हैं। इनमें चंद्रमहल यानि सिटी पैलेस, ईसरलाट, गोविंददेवजी मंदिर, हवा महल आदि स्मारक शामिल हैं। विश्व धरोहर की सूची में शामिल किए जाने की घोषणा के बाद यहां स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन काफी बढ गया है।
जंतर मंतर के उत्तर में सिटी पैलेस और गोविंददेवजी मंदिर हैं। पूर्व में हवा महल और पुरानी विधानसभा। पश्चिम में चांदनी चौक और दक्षिण में त्रिपोलिया बाजार है।

जयपुर के शाही महल चंद्रमहल के दक्षिणी-पश्चिमी सिरे पर मध्यकाल की बनी वेधशाला को जंतर-मंतर के नाम से जाना जाता है। पौने तीन सौ साल से भी अधिक समय से यह इमारत जयपुर की शान में चार चांद लगाए हुए है।
दुनियाभर में मशहूर इस अप्रतिम वेधाशाला का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह ने अपनी देखरेख में कराया था। सन 1734 में यह वेधशाला बनकर तैयार हुई।

कई प्रतिभाओं के धनी महाराजा सवाई जयसिंह एक बहादुर योद्धा और मुगल सेनापति होने के साथ साथ खगोल विज्ञान में गहरी रूचि भी रखते थे। वे स्वयं एक कुशल खगोल वैज्ञानिक थे। जिसका प्रमाण है जंतर-मंतर में स्थित ’जय प्रकाश यंत्र’ जिनके आविष्कारक स्वयं महाराजा जयसिंह थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ’भारत एक खोज’ में इन वेधशालाओं का जिक्र करते हुए लिखा है कि महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर में वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेजकर वहां से खगोल विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थों की पांडुलिपियां मंगाई। उन्हें पोथीखाने में संरक्षित कर अध्ययन के लिए उनका अनुवाद कराया। उल्लेखनीय है संपूर्ण जानकारी जुटाने के बाद ही महाराजा ने जयपुर सहित दिल्ली, मथुरा, उज्जैन और वाराणसी में वेधशालाएं बनवाई। लेकिन सभी वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे विशाल है और यहां के यंत्र और शिल्प भी बेजोड़ है। महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई इन पांच वेधशालाओं में से सिर्फ जयपुर और दिल्ली की वेधशालाएं ही अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रही हैं। शेष वेधशालाएं जीर्ण शीर्ण हो चुकी हैं।

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जयपुर की वेधशाला-जंतर मंतर

यह वेधाशाला सन 1728 में में जयपुर के तात्कालीन महाराजा सवाई जयसिंद द्वितीय द्वारा स्थापित कराई गई थी। उनके मन में सन 1718 से ही ज्योतिष संबंधी वेधशाला के निर्माण का विचार उत्पन्न हुआ। इस निमित्त उन्होंने ज्योतिष संबंधी विविध ग्रंथों का अध्ययन किया और विभिन्न भाषाओं में लिखे गणितीय ज्योतिष का संस्कृत भाषा में अनुवाद संशोधन सहित विभिन्ना भाषाओं के ज्ञाता मराठा ब्राह्मण पंडित जगन्नाथ सम्राट द्वारा करवाया। श्रीमाली पंडित केवलरामजी से गणित ज्योतिष संबंधी सारणियों का निर्माण कराया। ये दोनो विभिन्न भाषाओं के विद्वान थे। उनका इस कार्य में पूर्ण सहयोग रहा था। इसके अलावा महाराजा जयसिंह ने अरब ब्रिटेन यूरोप व पुर्तगाल आदि अनेक देशों में अनेक विद्वानों को कभेजकर वहां के ज्योतिष संबंधी ग्रंथों का सारभूत अध्ययन कराया इस प्रकार 6 वषोंर् तक निरंतर अनुशीलन और अनुसंधान करने के बाद सन 1724 में पहली वेधशाला दिल्ली में स्थापित की गई। कई वर्षों तक ग्रह नक्षतों और वेद आदि के अध्ययन में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के बाद भारत के चार अन्य स्थानों जयपुर उज्जैन बनारस और मथुरा में वेधशालाएं स्थापित की गई। इन सबमें जयपुर की यह वेधशाला सबसे महत्वपूर्ण है। जीर्णोद्धार 1901 में महाराजा सवाई माधोसिंह के समय में पं चंद्रधर गुलेरी और पंडित गोकुलचंद के सहयोग से संगमरमर के पत्थरों पर किया गया इससे पूर्व यह वेधशाला चूने और पत्थर से बनी हुईथी कालान्तर में इस विषय के प्रकांड विद्वान पं केदारनाथजी इस वेधाशाला में वेध आदि का कार्य सम्यक रूप से करते रहे। यहां के षष्ठांस यंत्र का जीर्णोद्धार भी इन्होंने ही कराया इसके अलावा यहां और दिल्ली की वेधशाला में भी इन्होंने जीर्णोद्धार कराए। जयपुर की यह वेधशाला देश की अन्य वेधशालाओं में सबसे सुरक्षित धरोहरों में से एक है।

विश्व धरोहर

Jantar Mantarयूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को जयपुर के जंतर-मंतर सहित दुनिया के 7 स्मारकों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की घोषणा की है।
ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया में वल्र्ड हैरिटेज कमेटी के 34वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इस वेधशाला को विश्व विरासत स्मारक की श्रेणी में शामिल कर लिया गया।
जंतर मंतर को विश्व विरासत की श्रेणी में लेने के पीछे कई ठोस कारण हैं। इनमें यहां के सभी प्राचीन यंत्रों का ठीक अवस्था में होना और इन यंत्रों के माध्यम से आज भी मौसम, स्थानीय समय, ग्रह-नक्षत्रों ग्रहण आदि खगोलीय घटनाओं की सटीक गणना संभव होना आदि प्रमुख कारण हैं।
यूनेस्को ने 282 वर्ष पहले लकड़ी, चूना, पत्थर और धातु से निर्मित यंत्रों के माध्यम से खगोलीय घटनाओं के अध्ययन की इस भारतीय विद्या को अदभुद मानकर इसे विश्व धरोहर में शामिल करने पर विचार किया। इन यंत्रों की खास बात यह है कि इनकी गणना के आधार पर आज भी स्थानीय पंचांगों का प्रकाशन होता है। साथ ही हर साल आषाढ पूर्णिमा को खगोलशास्त्रियों और ज्योतिषियों द्वारा यहां पवन धारणा के माध्यम से वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है।
जंतर मंतर में सम्राट यंत्र सबसे विशाल और आकर्षक यंत्र है, सतह से इस यंत्र की ऊंचाई 90 फीट है और यह यंत्र स्थानीय समय की सटीक जानकारी देता है।
यदि जंतर मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया जाता है तो राजस्थान का यह पहला और देश का 28 वां स्मारक होगा। विश्व धरोहर सूची में आने के बाद जंतर मंतर को जहां नई सांस्कृतिक पहचान मिलेगी वहीं हजारों डॉलर के स्मारक फंड का लाभ भी मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में भरतपुर का घना पक्षी अभ्यारण्य पहले ही यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक श्रेणी की विश्व धरोहर सूची में शामिल है।

प्रमुख यंत्र और उनकी विशेषताएं-

उन्नतांश यंत्र

जंतर मंतर के प्रवेश द्वार के ठीक बांये ओर एक गोलकार चबूतरे के दोनो ओर दो स्तंभों के बीच लटके धातु के विशाल गोले को उन्नतांश यंत्र के नाम से जाना जाता है। यह यंत्र आकाश में पिंड के उन्नतांश और कोणीय ऊंचाई मापने के काम आता था।

दक्षिणोदक भित्ति यंत्र-

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Dakshinottara Bhitti

उन्नतांश यंत्र के पूर्व में उत्तर से दक्षिण दिशाओं के छोर पर फैली एक दीवारनुमा इमारत दक्षिणोदत भित्तियंत्र है। सामने के भाग में दीवार के मध्य से दोनो ओर सीढियां बनी हैं जो दीवार के ऊपरी भाग तक जाती हैं। जबकि दीवार का पृष्ठ भाग सपाट है। दीवार के सामने की ओर 180 डिग्री को दर्शाया गया है जबकि पीछे के भाग में में डिग्रियों के दो फलक आपस में क्रॉस की स्थिति में हैं। दक्षिणोदत भित्ति यंत्र का जीर्णोद्धार 1876 में किया गया था। यह यंत्र मध्यान्न समय में सूर्य के उन्नतांश और उन के द्वारा सूर्य क्रांति व दिनमान आदि जानने के काम आता था।

दिशा यंत्र-

यह एक सरल यंत्र है। जंतर मंतर परिसर में बीचों बीच एक बड़े वर्गाकार समतल धरातल पर लाल पत्थर से विशाल वृत बना है और केंद्र से चारों दिशाओं में एक समकोण क्रॉस बना है। यह दिशा यंत्र है जिससे सामान्य तौर पर दिशाओं का ज्ञान होता है।

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Samrat Yantra

सम्राट यंत्र-

जिस तरह एक राज्य में सबसे ऊंचा ओहदा सम्राट का होता है उसी प्रकार जंतर मंतर में सबसे विशाल यंत्र सम्राट यंत्र है। अपनी भव्यता और विशालता के कारण ही इसे सम्राट यंत्र कहा गया। जंतर मंतर परिसर के बीच स्थित सम्राट यंत्र दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ती एक त्रिकोणीय प्राचीर है। यंत्र की भव्यता का अंदाजा इसी से हो जाता है कि धरातल से इसके शीर्ष की ऊंचाई 90 फीट है। सम्राट यंत्र में शीर्ष पर एक छतरी भी बनी हुई है। सामने से देखने पर यह एक सीधी खड़ी इमारत की तरह नजर आता है। यह यंत्र ग्रह नक्षत्रों की क्रांति, विषुवांश और समय ज्ञान के लिए स्थापित किया गया था। यंत्र का जीर्णोद्धार 1901 में राजज्योतिषी गोकुलचंद भावन ने कराया था।

षष्ठांश यंत्र-

षष्ठांश यंत्र सम्राट यंत्र का ही एक हिस्सा है। यह वलयाकार यंत्र सम्राट यंत्र के आधार से पूर्व और पश्चिम दिशाओं में चन्द्रमा के आकार में स्थित है। यह यंत्र भी ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति और अंश का ज्ञान करने के लिए प्रयुक्त होता था।

जयप्रकाश यंत्र ’क’ और ’ख’-

जय प्रकाश यंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन यंत्रों का आविष्कार स्वयं महाराजा जयसिंह ने किया। महाराजा जयसिंह स्वयं ज्योतिष और खगोल विद्या के ज्ञाता थे और इन विषयों में गहरी रूचि रखते थे। कटोरे के आकार के इन यंत्रों की बनावट बेजोड़ है। भीतरी फलकों पर ग्रहों की कक्षाएं रेखाओं के जाल के रूप में उत्कीर्ण हैं। इनमें किनारे को क्षितिज मानकर आधे खगोल का खगोलीय परिदर्शन और प्रत्येक पदार्थ के ज्ञान के लिए किया गया था। साथ ही इन यंत्रों से सूर्य की किसी राशि में अवस्थिति का पता भी चलता है। ये दोनो यंत्र परस्पर पूरक हैं। जंतर मंतर परिसर में ये यंत्र सम्राट यंत्र और दिशा यंत्र के बीच स्थित हैं। इन यंत्रों का जीर्णोद्धार 1901 में पंडित गोकुलचंद भावन और चंद्रधर गुलेरी ने करवाया।

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Nadivalaya Yantra

नाड़ीवलय यंत्र-

नाड़ीवलय यंत्र प्रवेशद्वार के दायें भाग में स्थित है। यह यंत्र दो गोलाकार फलकों में बंटा हुआ है। उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर झांकते इन फलकों में से दक्षिण दिशा वाला फलक नीचे की ओर झुका हुआ है जबकि उत्तर दिशा की ओर वाला फलक कुछ डिग्री आकाश की ओर उठा हुआ है। इनके केंद्र बिंदु से चारों ओर दर्शाई विभिन्न रेखाओं से सूर्य की स्थिति और स्थानीय समय का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।

ध्रुवदर्शक पट्टिका-

जैसा कि नाम से प्रतीत होता है। ध्रुवदर्शक पट्टिका ध्रुव तारे की स्थिति और दिशा ज्ञान करने के लिए प्रयुक्त होने वाला सरल यंत्र है। उत्तर दक्षिण दिशा की ओर दीवारनुमा यह पट्टिका दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमश: उठी हुई है। इसके दक्षिणी सिरे पर नेत्र लगाकर देखने पर उत्तरी सिरे पर घ्रुव तारे की स्थिति स्पष्ट होती है। उल्लेखनीय है कि ध्रुव तारे से उत्तर दिशा का ज्ञान करना अतिप्राचीन विज्ञान है।

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Laghu Samrat Yantra

लघु सम्राट यंत्र-

लघु सम्राट यंत्र घ्रुव दर्शक पट्टिका के पश्चिम में स्थित यंत्र है। इसे धूप घड़ी भी कहा जाता है। लाल पत्थर से निर्मित यह यंत्र सम्राट यंत्र का ही छोटा रूप है इसीलिये यह लघुसम्राट यंत्र के रूप में जाना जाता है। इस यंत्र से स्थानीय समय की सटीक गणना होती है।

राशि वलय यंत्र-

राशि वलय यंत्र 12 राशियों को इंगित करते हैं। प्रत्येक राशि और उनमें ग्रह नक्षत्रों की अवस्थिति को दर्शाते इन बारह यंत्रों की खास विशेषता इन सबकी बनावट है। देखने में ये सभी यंत्र एक जैसे हैं लेकिन आकाश में राशियों की स्थिति को इंगित करते इन यंत्रों की बनावट भिन्न भिन्न है। इन यंत्रों में मेष, वृष, मिथुन, कन्या, कर्क, धनु, वृश्चिक, सिंह, मकर, मीन, कुंभ और तुला राशियों के प्रतीक चिन्ह भी दर्शाए गए हैं।

चक्र यंत्र-

राशिवलय यंत्रों के उत्तर में चक्र यंत्र स्थित है। लोहे के दो विशाल चक्रों से बने इन यंत्रों से खगोलीय पिंडों के दिकपात और तत्काल के भौगोलिक निर्देशकों का मापन किया जाता था।

रामयंत्र-

रामयंत्र जंतर मंतर की पश्चिमी दीवार के पास स्थित दो यंत्र हैं। इन यंत्रों के दो लघु रूप भी जंतर मंतर में इन्हीं यंत्रों के पास स्थित हैं। राम यंत्र में स्तंभों के वृत्त के बीच केंद्र तक डिग्रियों के फलक दर्शाए गए हैं। इन फलकों से भी महत्वपूर्ण खगोलीय गणनाएं की जाती रही थी।

दिगंश यंत्र-

दिगंश यंत्र निकास द्वार के करीब स्थित है। यह यंत्र वृताकार प्राचीर में छोटे वृत्तों के रूप में निर्मित है। इस यंत्र के द्वारा पिंडों के दिगंश का ज्ञान किया जाता था।
इनके अलावा यहां महत्वपूर्ण ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय अंकन के लिए क्रांतिवृत यंत्र, यंत्र राज आदि यंत्रों का भी प्रयोग किया जाता रहा था।

उल्लेखनीय है कि यूनेस्को ने जंतर मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की घोषणा के पीछे इसकी अनेक विशिष्टताओं पर गौर किया है। जंतर मंतर का रखरखाव काबिले तारीफ है और विश्व धरोहर सूची में शामिल होने की घोषणा के बाद पुरातत्व विभाग और जयपुर प्रशासन ने जंतर मंतर का रखरखाव और भी बेहरत कर दिया है। जंतर मंतर के जो हिस्से जर्जर हो चुके थे उन्हें प्राचीन निर्माण विधियों से ठीक कराकर रंग रोगन किया गया है। जंतर मंतर के बीच स्थित गार्डन की भी सार संभाल की जा रही है। साथ ही पर्यटकों को अधिक संख्या में आकर्षित करने के लिए हर शाम साढ़े 7 बजे से आधे घंटे का लाईट और साउंड शो भी आयोजित किया जा रहा है। प्रत्येक यंत्र की जानकारी देने के लिए ऑडियो गाईड भी उपलब्ध कराए गए हैं।

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p style=”text-align:justify;”>जंतर मंतर जयपुर की ही नहीं बल्कि विश्व की प्रमुख धरोहरों में से एक है। अपने अंक में इसने जयपुर के शासकों की उस महत्वकांक्षा को समेटा हुआ है जिसमें जयपुर को वाणिज्य, व्यापार, नागरीय खूबसूरती और जनसुविधाएं देने के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर विकास करने की प्रेरणा दी थी। सच्चे अर्थों में जंतर मंतर एक ऐतिहासिक मिसाल है।

विश्व की दूसरी वेधशालाओं की तुलना में जयपुर की वेधशाला में खगोलीय यंत्रों की संख्या ज्यादा है। राशि वलय यंत्र अन्य जंतर मंतर में उपलब्ध नहीं है। जयपुर के जंतर मंतर में कुल 16 खगोलीय यंत्र हैं, जिनके माध्यम से सभी तरह की आकाशीय गतिविधियों की सटीक गणना की जा सकती है। हर साल लगभग सात लाख पर्यटक इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आते हैं। यह न केवल पर्यटन के लिहाज से बेहतर है बल्कि ज्योतिष शास्त्रीय गणनाओं की जानकारी बढाने में भी सहायक हैं।

इंटरप्रिटेशन सेंटर

जयपुर के जंतर मंतर में सोमवार 20 मई को इंटरप्रिटेशन सेंटर की विधिवत शुरूआत हो गई। पर्यटल और कला मंत्री बीना काम ने सेंटर का उद्घाटन किया। सेंटर के माध्यम से पर्यटक यहां जंतर मंतर में मौजूद यत्रों की विशेषताएं, खगोलीय तंत्र और विशेष गणितीय क्षमताओं की जानकारी ले सकेंगे। हालांकि सेंटर को तैयार करने में 14 लाख रूपए का खर्चा हुआ है लेकिन फिर भी अभी कुछ तकनीकि खामियां यहां नजर आ रही हैं। इन खामियों को पर्यटन मंत्री ने दुरुस्त करने के आदेश दिए। सेंटर में करीब तीन सौ साल पुराने इन यंत्रों को करीब से जानने का मौका मिलेगा। साथ ही ऑडियो वीजुअल शो के जरिए खगोलीय गणनाओं को भी समझा जा सकेगा। एक बार में 20 पर्यटक यह शो देख सकेंगे। जंतर मंतर को अब सैलानी और भी विस्तार से जान सकेंगे। अभी तक पर्यटक यहां खगोलीय गणनाओं की जानकारी के लिए लाइट एंड साउंड शो व गाइड पर निर्भर रहते थे। इंटरप्रिटेशन सेंटर के शुरू होने से पर्यटकों को मॉडल्स और डाक्यूमेंट्री के जरिए आसानी से समझा जा सकेगा।

आशीष मिश्रा
09928651043
पिंकसिटी डॉट कॉम
नेटप्रो इंडिया


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Jantar Mantar, Near City Palace in Jaipur in Rajasthan.

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  • जापान में जंतर मंतर

    जंतर मंतर ने अपनी खूबसूरती और विज्ञान के कारण वल्र्ड हेरिटेज का दर्जा पाया है। अपनी इसी साख के कारण जंतर मंतर दुनियाभर के लोगों के लिए उत्सुकता और जिज्ञासा का विषय बन गया है। जंतर मंतर के निर्माण, विज्ञान और इतिहास की कहानी अब जापान के लोगों तक भी पहुंचेगी। इसके इतिहास को पर्दे पर लाने के लिए जल्दी ही टोकियो ब्रॉडकास्ट की टीम शूटिंग शुरू करेगी। टोकियो ब्रॉडकास्ट सिस्टम की टीम 26 मार्च से दस दिन तक जंतर मंतर की शूटिंग करेगी। शूटिंग का उद्देश्य जापान की सरकार को जंतर मंतर की तर्ज पर जापान में एक और जंतर मंतर तैयार करने के लिए प्रेरित करना है। हाल ही यह ब्रॉडकास्ट कंपनी की टीम जयपुर आई थी और उन्होंने जंतर मंतर के नक्षत्रों, सम्राट यंत्र, पंचाग, ज्योतिष के यंत्र, प्रकाश यंत्र, यंत्र राज, राशि वलय, वृहद सम्राट, राम यंत्र, चक्र यंत्र, कपाली यंत्र, ध्रुव दर्शक पट्टिका, नाड़ी वलय आदि की जानकारी ली। जंतर मंतर प्रशासन की ओर से टीम को यंत्रों की उपयोगिता, इतिहास और महत्व की जानकारियां दी गई। बहुत कम लोग ये जानते हैं कि जापान में भी जंतर मंतर है। जापान की सरकार का एक दल तीस साल पहले जंतर मंतर देखने जयपुर आया था। वे लोग जंतर मंतर देखकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने जापान सरकार से भी जापान में जंतर मंतर बनाने की गुजारिश की। इसके बाद जापान सरकार ने राशि वलय यंत्रों की कुछ आकृतियां भी बनवाई लेकिन उचित रखरखाव नहीं कर पाए। ब्रॉडकास्ट कंपनी के अध्यक्ष का इस बारे में कहना है कि वे जापान के गुनमा शहर को हैरिटेज सिटी बनाने के लिए दुनियाभर के ऐतिहासिक शहरों में महत्वपूर्ण स्मारकों की फिल्म शूट कर रहे हैं।

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  • कपाली यंत्र को बनाया ’खेल’

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