जयपुर Hindi

हर्षत माता का मंदिर

Abhaneri

Harshat Mata Templeइस विशाल मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने आठवीं नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तात्कालीन आभानेरी के शासक थे। उस समय आभानेरी आभानगरी के नाम से जानी जाती थी। महामेरू शैली का यह पूर्वाभिमुख मंदिर दोहरी जगती पर स्थित है। मंदिर गर्भगृह योजना में प्रदक्षिणापथयुक्त पंचरथ है जिसके अग्रभाग में स्तंभों पर आधारित मंडप है। गर्भगृह एवं मण्डप गुम्बदाकार छतयुक्त हैं जिसकी बाहरी दीवार पर भद्र ताखों में ब्राह्मणों, देवी देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। ऊपरी जगती के चारों ओर ताखों में रखी सुंदर मूर्तियां जीवन के धार्मिक और लौकिक दृश्यों को दर्शाती हैं। यही इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।
हर्षत माता का पूर्वमुखी मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा चारों ओर से लोहे की मेढ बनाकर संरक्षित किया गया है। मंदिर के सामने हनुमानजी का एक छोटा मंदिर है। यह मंदिर चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के बीच में है। लोहे के गेट से मंदिर में प्रवेश करने पर बायें ओर मंदिर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी और पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा है, जिसमें उल्लेख है कि यह संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक है। मंदिर पुरातन द्रविड शैली में बना है। हालांकि जिस मौलिक रूप में यह आठवीं Abhaneriनवीं सदी में गढ़ा गया था वैसा नहीं है। बल्कि मंदिर के पाषाण खंडों को आपस में जोड़कर मंदिर का मूल रूप देने का प्रयास किया गया है। मंदिर कर प्रथम जगती पर चारों ओर प्राचीन नक्काशीनुमा पत्थरों को सजाया गया है। कुछ पाषाण खंडों के ढेर यहां वहां घास पर भी लगे दिखाई देते हैं। दूसरी जगती कुछ सात-आठ फीट का चौरस धरातल है। मुख्यद्वार के ठीक सामने से बनी सीढियां इस धरातल और इससे ऊपर की जगती पर स्थित मंदिर तक पहुंचाती हैं। इस जगती के दायें ओर छोटा शिवालय शिव-पंचायत सहित मौजूद है। दूसरी जगती एक तरह की खुली परिक्रमा है जिसके बीच एक ऊंचे आयाताकार स्तर पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप बना है। परिक्रमा जगती के चारों ओर एक जैसी पाषाण द्वारशाखाओं को संजोया गया है बीच-बीच में स्तंभों पर उत्कीर्ण मूर्तियों को रखा गया है। चारों ओर हजारों की संख्या में ये टूटे हुए शैल अपनी कला से आनंद भी देते हैं तो दुख भी होता है कि इतनी खूबसूरत कला को खंडित क्यों किया गया। मंदिर का मुख्य मंडप शानदार मूर्तियां और स्तंभों से अचंभित करता है। शैल खंडों को बस एक के ऊपर एक जमा दिया गया है। इनके बीच चूना या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है। स्तंभों पर उत्कीर्ण कला लाजवाब है। मंडप की गुम्बदाकार छत ईंटों से बनाई गई है। यह स्थानीय लोगों का प्रयास है जो मंदिर के पुनर्निमाण की ललक दिखाता है। मंदिर का गर्भगृह छोटा है। लोहे की सलाखों वाले छोटे गेट के भीतर हर्षत माता की प्राचीन मूर्ति नजर नहीं आती। बल्कि नए शिल्प की पाषाण की दुर्गा प्रतिमा को पूजा जाता है। संभवत: मुख्य मूर्ति पूर्ण रूप से खंडित कर दी गई थी अथवा हजारों खंडित मूर्तियों में उसकी पहचान नहीं हो सकी।

Harsata Mata Temple Abhaneri Temple Abhaneri Temple Abhaneri

हर्षत माता का अर्थ है हर्ष देने वाली। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप पूजते थे अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रिसासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा मां की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात हर्ष की दात्री के नाम से भी जाना जाने लगा।

बाद में देश पर तुर्क और मुगल आक्रांताओं का जोर बढ़ा और तुर्क शासकों ने पूरे देश की धार्मिक आस्थाओं को खंडित करना आरंभ किया। उसी दौर में तुर्क शासक मोहम्मद गजनी ने उत्तर भारत के कई राज्यों पर फतेह हासिल की और इस आंधी में जहां जहां हिन्दू धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक दिखाई दिए, उन्हें नष्ट कर दिया गया। हर्षत माता के भव्य मंदिर को भी खंड खंड कर दिया गया। पाषाण पर उत्कीर्ण अजूबा कलाकृतियों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। एक एक शिला के छोटे छोटे टुकड़े कर शिल्प का पहाड़ लगा दिया गया।

कालान्तर में स्थानीय लोगों ने उन टुकड़ों को एकत्र किया। उनकी जगह की पहचान की और जमा-जमा कर पुन: माता का मंदिर निर्मित कर दिया। आज पत्थरों के ये टुकड़े एक के ऊपर एक रखे हैं और हर्षत माता की वास्तविक मूर्ति भी यहां नहीं है। जबकि पत्थर और सीमेंट से बनी आघुनिक शिल्प की मूर्ति को यहां प्रतिष्ठित किया गया है।

हर्षत माता का मंदिर गुप्तकाल से मध्यकाल के बीच निर्मित अद्वितीय इमारतों में से एक मानी जाती है। दुनियाभर के संग्रहालयों में यहां से प्राप्त मूर्तियां आभानेरी का नाम रोशन कर रही हैं।
इस मंदिर के खंडहर भी दसवीं सदी की वास्तुशिल्प और मूर्तिकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
लगभग तीन हजार साल पुराने माने जाने वाले इस गांव के लोग भी मंदिर की प्राचीनता को जानते समझते हैं और भरपूर संरक्षण करते हैं। स्थानीय लोग मंदिर में पूरी आस्था और श्रद्धा संजोये हुए हैं। यहां तीनदिवसीय वार्षिक मेले में इन स्मारकों के प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम देखते ही बनता है। वर्तमान में हर्षत माता मंदिर और चांद बावड़ी दोनो भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक हैं।


For English: Harshat Mata Temple

Harshat Mata Temple Gallery

Harshat Mata Temple, Abhaneri, near Dausa district of Rajasthan state in India

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